जाना तु्म्हारा यूँ चुभेगा हमें
कभी सोचा न था
तुम यूँ चले जाओगे,न रोकेगा कोई
कभी सोचा न था
बरसों का प्यार भी था धोखा तुम्हे
इस सच से अंजान तुम?
कभी सोचा न था
सर्वस्व सौंपा था तुमने जिसे
वो सच में छीन लेगा
कभी सोचा न था
प्रेम की खातिर था जीवन तुम्हारा
वही छीन लेगा मधुबन भी तुम्हारा
कभी सोचा न था
हाँ टूटे हो तुम और टूटे हैं हम
बेबसी का ये नज़ारा
कभी सोचा न था
नई राह में इक नई चाह में
पड़ेगा जीना दुबारा
कभी सोचा न था
हों खुशियाँ ही खुशियाँ
जले दीपक की लौ
दुआ है अब,कभी फिर न हो
ऐसा कुछ
जो तुमने कभी सोचा न था…
कभी सोचा न था
Filed under कविता
kaun aisaa sochtaa hai ?
phir jo chaahte nahee ho jaataa hai
insaan binaa mohabbat aur sahaare ke jee nahee paataa
isliye bhatktaa rahtaa
bahut achhee abhivyakti,par khudaa naa kare kisi ke saath aisaa ho
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जीवन में हर घटना से सीख ले आगे बढ़ जाईये।
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सच्चे प्यार के काबिल नहीं थे वह,
इसलिए छोडके चले गए हमें वह ,
ऐसा हमने…… क्यों सोचा न था |
सच्चा प्यार करनेवाला ऐसा ही सोचा करें | अच्छी कविता के लिए बधाई | धन्यवाद |
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कभी मिलना, कभी बिछड़ना.
यही फ़िराक, यही विसाल.
बस यही ज़िंदगी है.
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अक्सर वही होता है जो हम सोचते नहीं!
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wow i love this i mad so nice good really so nice i remind me something true
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Thanks Sunil ji for liking this…
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hmm , nice one ..
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