कभी सोचा न था


जाना तु्म्हारा यूँ चुभेगा हमें
कभी सोचा न था
तुम यूँ चले जाओगे,न रोकेगा कोई
कभी सोचा न था
बरसों का प्यार भी था धोखा तुम्हे
इस सच से अंजान तुम?
कभी सोचा न था
सर्वस्व सौंपा था तुमने जिसे
वो सच में छीन लेगा
कभी सोचा न था
प्रेम की खातिर था जीवन तुम्हारा
वही छीन लेगा मधुबन भी तुम्हारा
कभी सोचा न था
हाँ टूटे हो तुम और टूटे हैं हम
बेबसी का ये नज़ारा
कभी सोचा न था
नई राह में इक नई चाह में
पड़ेगा जीना दुबारा
कभी सोचा न था
हों खुशियाँ ही खुशियाँ
जले दीपक की लौ
दुआ है अब,कभी फिर न हो
ऐसा कुछ
जो तुमने कभी सोचा न था…

9 टिप्पणियां

Filed under कविता

9 responses to “कभी सोचा न था

  1. kaun aisaa sochtaa hai ?
    phir jo chaahte nahee ho jaataa hai
    insaan binaa mohabbat aur sahaare ke jee nahee paataa
    isliye bhatktaa rahtaa

    bahut achhee abhivyakti,par khudaa naa kare kisi ke saath aisaa ho

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  2. जीवन में हर घटना से सीख ले आगे बढ़ जाईये।

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  3. सच्चे प्यार के काबिल नहीं थे वह,
    इसलिए छोडके चले गए हमें वह ,
    ऐसा हमने…… क्यों सोचा न था |
    सच्चा प्यार करनेवाला ऐसा ही सोचा करें | अच्छी कविता के लिए बधाई | धन्यवाद |

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  4. कभी मिलना, कभी बिछड़ना.
    यही फ़िराक, यही विसाल.
    बस यही ज़िंदगी है.

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  5. अक्सर वही होता है जो हम सोचते नहीं!

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  6. wow i love this i mad so nice good really so nice i remind me something true

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  7. ssssssssssssssssssoooooooooooooooooooooooooooooooo ggggggggggggggggggggoooooooooooooooooddddddddddddddd iiiiiiiiiiiiiiiiiiiiimmmmmmmmmmmmmmmaaaaaaaaaaaaaaaddddddddddddddddddd that is so good mam

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