याद आती है वो शाम
जब बेपरवाह सबके सामने
कहा था तुमने –
चाँद से बहुत प्यार है मुझे
उसे देखता हूँ तो
न जाने क्या हो जाता है.
हाँ ! बात तो तुम चाँद की
ही कर रहे थे …
फिर भी अधरों पे न जाने
कहाँ की शर्म फ़ैल रही थी
खुद के चाँद होने का
गुमाँ जो था दिल में कहीं ….
याद आती है वो शाम
Filed under कविता
Amazing….wonderful 🙂
your poems inspired me to buy my first poem book “yama” by mahadevi verma 🙂
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फिर भी अधरों पे न जाने
कहाँ की शर्म फ़ैल रही थी
खुद के चाँद होने का
गुमाँ जो था दिल में कहीं …फिर भी अधरों पे न जाने
waah indu ji kya khoob kaha ….chand hone ka gumaan har kisi ko rataha hai p[ar haar koi chand to nahi hota
tabasum khil jate hai hontho pe
par sab kuch najro se bayan to nahi hota ……….:))))
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वाकई एक यथार्थ अभिव्यक्ति है आपकी.
सच में ऐसा ही भान होता है जब कोई आपके सामने खूबसूरत तारीफ़ करता है और हमें लगता है की ये बात शायद मेरे लिए ही की जा रही है.
– डॉ. विजय तिवारी
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वाह जी क्या खूब तुलना की हैं चाँद से
प्रेम की पीर
अंधकार दे खोय
मन में बसे (प्रेम पे एक छोटा सा हाइकु मेरी और से )
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खुद के चाँद होने का
गुमाँ जो था दिल में कहीं ….
आप हो ही दिल-आत्मा-मन से खुबसूरत 🙂
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bahut khub…
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Amazing feelings.
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चाँदनी को बस अपने ही चाँद से नाता है,
उसके संग ही उसको आना जाना आता है।
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बहुत ही बढ़िया
सादर
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चाँद से सभी बच्चे प्यार करते हैं…..मा मा से प्यार अन्दर की बात है.
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चाँद……..अच्छा है.
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चाँद
सूरज की रौशनी में
नहाता है.
ना जाने
फिर भी उससे
जलता क्यों है ?
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इंदु जी सुंदर पंक्तियाँ….
चाँद को चाँद कहने में शर्म कैसी !
वैसे कान के नीचे दो बजाने चाहिए थे……
चाँद को चाँद कहने वालों का हश्र फिर भी कम होगा !
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बहुत सुंदर /
अपनी कहानी याद आयी
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आपकी रचना 60 – 70 के दशक की फिल्मों की ओर ले गईं …. छिपी छिपी सी बातों से मन के भावों का इज़हार करना …. अप्रत्यक्ष रूप से सच ही तुम्हारी ही तारीफ हो रही थी :):) सुंदर प्रस्तुति
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बहोत खूब |
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सुन्दर अभिव्यक्ति!!
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kya kare koi teri taarif aap ki ..her taarif hain kaam aap ke aage..
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Ah, romantic ❤
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वाह बहुत सुंदर बहुत उम्दा रचना…….अति उत्तम।
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beautiful~
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hum toh aapke fan hote jaa rahe hain…!
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सुंदर रचना…..
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Bahut sunder bhav..
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