याद आती है वो शाम


याद आती है वो शाम
जब बेपरवाह सबके सामने
कहा था तुमने –
चाँद से बहुत प्यार है मुझे
उसे देखता हूँ तो
न जाने क्या हो जाता है.
हाँ ! बात तो तुम चाँद की
ही कर रहे थे …
फिर भी अधरों पे न जाने
कहाँ की शर्म फ़ैल रही थी
खुद के चाँद होने का
गुमाँ जो था दिल में कहीं ….

23 टिप्पणियां

Filed under कविता

23 responses to “याद आती है वो शाम

  1. Amazing….wonderful 🙂
    your poems inspired me to buy my first poem book “yama” by mahadevi verma 🙂

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  2. अंजु(अनु)

    वाह जी क्या खूब तुलना की हैं चाँद से

    प्रेम की पीर
    अंधकार दे खोय
    मन में बसे (प्रेम पे एक छोटा सा हाइकु मेरी और से )

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  3. vibha rani

    खुद के चाँद होने का
    गुमाँ जो था दिल में कहीं ….
    आप हो ही दिल-आत्मा-मन से खुबसूरत 🙂

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  4. चाँदनी को बस अपने ही चाँद से नाता है,
    उसके संग ही उसको आना जाना आता है।

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  5. यशवन्त माथुर

    बहुत ही बढ़िया

    सादर

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  6. sudesh bhardwaj

    चाँद से सभी बच्चे प्यार करते हैं…..मा मा से प्यार अन्दर की बात है.

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  7. sudesh bhardwaj

    चाँद……..अच्छा है.

    ——————————

    चाँद

    सूरज की रौशनी में

    नहाता है.

    ना जाने

    फिर भी उससे

    जलता क्यों है ?

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  8. sudesh bhardwaj

    इंदु जी सुंदर पंक्तियाँ….

    चाँद को चाँद कहने में शर्म कैसी !

    वैसे कान के नीचे दो बजाने चाहिए थे……

    चाँद को चाँद कहने वालों का हश्र फिर भी कम होगा !

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  9. pk awasthi

    बहुत सुंदर /
    अपनी कहानी याद आयी

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  10. आपकी रचना 60 – 70 के दशक की फिल्मों की ओर ले गईं …. छिपी छिपी सी बातों से मन के भावों का इज़हार करना …. अप्रत्यक्ष रूप से सच ही तुम्हारी ही तारीफ हो रही थी :):) सुंदर प्रस्तुति

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  11. kya kare koi teri taarif aap ki ..her taarif hain kaam aap ke aage..

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  12. वाह बहुत सुंदर बहुत उम्दा रचना…….अति उत्तम।

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