पुरुषत्व को जोड़ती
गहन गुफाओं में पनाह देती
स्त्री हूँ मै ।
एक नई श्रृष्टि रचती
पहाड़ों से नदिया बहाती
स्त्री हूँ मै ।
इमारतों को बदल घर में
प्रेम की छाँव देती
स्त्री हूँ मै ।
अतिथि देवो भव संस्कारों
को पिरोती पीढ़ी दर पीढ़ी
स्त्री हूँ मै ।
पिरोती समाज की हर रीत को
चटकती बिखरती माला सी
स्त्री हूँ मै ।
हाँथों में सजा कर पूजा की थाली
आँखों में गंगा ह्रदय में दुर्गा
स्त्री हूँ मै ।
देखो ! न दिखूँ जहाँ मै
वहाँ गौर से
सुनो ! न सुनाई दे जो आवाज़
मेरी उसे
जवालामुखी सी बेहद शांत
स्त्री हूँ मै ।
सदियों से समाज मुझे समझाए जाए
जबकि अब तलक न ये खुद समझ पाए
श्रृष्टि कर्ता ही नहीं
सम्पूर्ण श्रृष्टि हूँ मै
हाँ ! स्त्री हूँ मै ….
आपकी यह बेहतरीन रचना बुधवार 17/10/2012 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
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आपके शब्दों से आगे कुछ कहना सूरज को रोशनी दिखाना हें, फिर भी दो शब्द .. हर रूप तुझसे बने…. हर रूप में है तू छुपी, हर भाव तुझसे बने….. हर शब्द में तू है बसी ……बस तू एक स्त्री ………
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beautiful words Indu:)
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behatarin post indu ji ..prakruti ka asitwa sdaiv naganye raha hai parantu prakrurti jananai hai , khamosh hawao me sada bahati hui apna ehsaas jagati .
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प्रकृति और संस्कृति की स्थापिता..
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उत्तम प्रस्तुती | इश्वर के सबसे अच्छे निर्मिती का यथार्थ वर्णन | बधाई |
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सदियों से समाज मुझे समझाए जाए
जबकि अब तलक न ये खुद समझ पाए
स्रष्टि कर्ता ही नहीं
सम्पूर्ण स्रष्टि हूँ मै
हाँ ! स्त्री हूँ मै ….
इन नवरात्र में यह बात सबको समझ आनी चाहिये।
सादर
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स्त्री,
हाँ तुम स्त्री हो ,
नहीं कोई विकल्प है
जो तुम्हारा
सृष्टि सृजन का
संकल्प है !
धन्य और अतुलनीय
हाँ तुम स्त्री हो!
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आपने स्त्री का सार्वकालिक चित्र खींचा है और वास्तव में यही स्त्री का रूप है पर आजकल नकारात्मक बदलावों से भी प्रभावित हो रही है ।
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सुन्दर रचना……. हाँ हर जगह अपना एक निशां छोड़ती हाँ स्त्री ही तो हो तुम 🙂
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सदियों से समाज मुझे समझाए जाए
जबकि अब तलक न ये खुद समझ पाए
स्रष्टि कर्ता ही नहीं
सम्पूर्ण स्रष्टि हूँ मै
हाँ ! स्त्री हूँ मै ….
यह बात कब समझेगा कोई ……. संतोष जी ,नकारात्मक भाव भी इसी समाज की देन हैं , स्त्री की भावनाओं को इतना दबाया गया कि जब उसे मौका मिला तो स्प्रिंग की तरह तेज़ी से उछाल मार दी ।
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bahut khoob….ek nayi urja pradan karti hai apki ye kavita….khud say khud ko milati…..
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बहुत उम्दा रचना |
नई पोस्ट:- हे माँ दुर्गा
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वाह….सार्थक एवं बेमिसाल रचना बढ़ी।
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सार्थक एवं बेमिसाल रचना।
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स्त्री होने का अभिमान हैं यह .. सजगता है ..विश्वास है यह … कम शब्दों में सब ..
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‘सम्पूर्ण स्रष्टि हूँ मै,हाँ ! स्त्री हूँ मै ….’ बहुत प्रभावशाली है रचना. इसके पूर्व की पंक्तियाँ मानो ‘रन वे’ हो, और यहाँ से होता है सोचों और अनुभूतियों का ‘टेक ऑफ’…अच्छा लगा पढ़ना और सोचना.
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सम्पूर्ण स्रष्टि हूँ मै,हाँ ! स्त्री हूँ मै ….इसके पूर्व की पंक्तियाँ मानो ‘रन वे’ है..विचारों और अनुभूतियों का ‘टेक ऑफ’ यहाँ से घटित होता है…पञ्च लाइन है यह.
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Your pen gives something different. I may not agree with some of your expressions, yet admire.
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सशक्त अभिव्यक्ति।
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सच में ,बहुत अच्छी कविता ………….साधुवाद
डॉ. नीरज
http://achhibatein.blogspot.in/
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