तुम भी तो होगे किसी की आँखों के तारे
होगे अरमान किसी का
बनोगे ज़िंदगी के सहारे
आज दिल करा
चूम लूँ तुम्हारा माथा
फँसा दूँ अपनी उंगलियाँ
तुम्हारे भूरे लेकिन
घुँघराले बालों में
तुम दिखे थे बस एक
छोटे से पल में
और हम आगे निकल गए
लेकिन नहीं
हमारी गाड़ी निकली
शरीर भी
मन रह गया तुम्हारे पास
आँखें थम गईं तुम्हारे साथ
क्या पुकारूं तुम्हें ?
कि पुकारना है मुझे।
तुम झुके थे उस वक्त
तुम्हारे बाल और
तुम्हारा ललाट ही
दिखा था हाँ ,तुम्हारे हाँथ भी
आइसबॉक्स में
पानी की बोतलें करीने से
लगाते हुए
जैसे कि ज़रा भी
बर्फ़ और बोतल का स्पर्श
दूर न होने पाए
जैसे की राहगीरों को
ठंडा पानी ही पिलाना है
या ,
यही तुम्हारी रोजी-रोटी है
वैसे थोडा कम ठण्डी बोतल
भी बिक तो जायेगी ही
लेकिन तुम तल्लीन हो
अपने कर्म में !
कितना आसान है न
कि बस तुम्हे देखा भर है
कर्म करते हुए
पूरी सच्चाई के साथ
झुके हुए जिंदगी के साथ
अपनी भावनाओं में तुम्हें
संजोने के साथ …
क्या पुकारूँ तुम्हें …
Filed under कविता
भावुक
पसंद करेंपसंद करें
धन्यवाद
पसंद करेंपसंद करें
आज इंडी ब्लॉगर मीट में आपका परिचय प्राप्त हुआ था, विदाई के समय भेंट भी हुई थी|
अभी अभी कुछ कविता पढ़ीं. अच्छी लगीं| समय मिलने पर और कवितायेँ भी पढूंगा|
मुझसे भी कभी कभी कविता लिख जाती है और उन में से कुछ gahrana.wordpress.com पर हैं|
पसंद करेंपसंद करें
ऐश्वर्य मोहन जी धन्यवाद, आपको रचनाएँ पसंद आई जानकार ख़ुशी हुई।
पसंद करेंपसंद करें
कर्मनिरत दो हाथ दिख रहे,
आँखों के तारे तुम भी हो।
पसंद करेंपसंद करें
बहुत खूब !
पसंद करेंपसंद करें
karm hi jeevan hai 🙂
पसंद करेंपसंद करें
जी, मुकेश जी …
पसंद करेंपसंद करें
आपने लिखा….
हमने पढ़ा….
और लोग भी पढ़ें;
इसलिए बुधवार 10/07/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
पर लिंक की जाएगी.
आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ….
लिंक में आपका स्वागत है .
धन्यवाद!
पसंद करेंपसंद करें
बहुत-बहुत आभार, यशोदा जी।
पसंद करेंपसंद करें
सुन्दर भाव भरी कविता है इन्दू जी.. लिखती रहिये… इन्डी ब्लोगर मीट में आपसे पहली बार मुलाकात हुई..सतीश सक्सैना जी के साथ… अच्छा लगा
मोहिन्दर कुमार
http://dilkadarpan.blogspot.com
पसंद करेंपसंद करें
हमे भी आपसे मिलकर बेहद प्रसन्नता हुई, आभार …
पसंद करेंपसंद करें
कर्म ही प्रथम है … जहां कर्म है वहां प्रेम तो होता ही है …
पसंद करेंपसंद करें
सहमत …
पसंद करेंपसंद करें
मन की संवेदनशीलता ही ऐसे भावों को पैदा कर सकती है , जीवन में कर्म ही सही और सदा पसंद किया जाता है और वो ही किसी के मन में अपनी जगह बना सकता है ।
सुन्दर रचना के लिए बधाई !
पसंद करेंपसंद करें
धन्यवाद …
पसंद करेंपसंद करें
बहुत सुन्दर…..अर्थपूर्ण…..
अनु
पसंद करेंपसंद करें
सुन्दर….
पसंद करेंपसंद करें
बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना….
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
पसंद करेंपसंद करें
hridayasparshi aur sundar bhavon ko vyakt karti panktiyan….
पसंद करेंपसंद करें