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ये जीवन है


सुबह से दो सर्जरी करने के बाद अब ओ पी डी में मरीजों से घिरा हूँ . नाम क्या है ? शेफ़ाली डाक्टर साहब . शेफ़ाली लिखते ही कलम अंतिम शब्द पर रुक सी गई और याद आ गया वो दिन जब ये नाम पहली बार लिखा था. बीस साल हो गए. लखनऊ के मेडिकल कालेज का पहला दिन और मेरी पहली दोस्त . हाय मै शेफ़ाली और आप ? मै राजीव ! मै कानपुर से हूँ और आप ? मै अलाहाबाद से ! पहली क्लास में वो मेरे पास ही आकर बैठी और मेरी कॉपी पर लिखे नाम को देखकर बोली ‘ ओह ! तुम्हारी राइटिंग कितनी सुन्दर है तुम डॉक्टर कैसे बन सकते हो ?’ एक लम्बी साँस खींच कर उसकी तरफ देखते हुए मैंने बोला जैसे कि आप ! मतलब क्या है तुम्हारा ? मतलब ये कि सुन्दर लड़कियाँ पढ़ती भी हैं ? जी हाँ और तभी मै यहाँ हूँ. लेकिन डा. की राइटिंग तो कभी अच्छी नहीं देखी . अच्छा लो मेरी नोट बुक पर मेरा भी नाम लिख दो और पहली बार ये नाम क्या लिखा मैंने कि बस अगले पाँच सालों तक सभी कॉपी किताबों में उसका नाम लिखना जैसे मेरे कोर्स का हिस्सा ही हो गया .रोज क्लास ख़त्म होते ही हम दोनों सारी भीड़ – भाड़ से दूर कैम्पस के कोने में लगे पाकर के पेड़ के नीचे उसी की टेक लेकर ज़मीन पर एक साथ बैठते और उस दिन के हर लेक्चर पर खूब चर्चा करते. आज का लेक्चर कितना बोरिंग था ना राजीव मेरी समझ में तो कुछ भी नहीं आया . हाँ कुछ चीज़े हम सिर्फ लेक्चर से नहीं समझ सकते हैं कल प्रैक्टिकल करोगी तब समझ जाओगी . वैसे तुम्हे डर तो नहीं लगेगा ? हाँ या पता नहीं कल की कल देखेंगे. एक बात याद रखना शेफ़ाली कि तुम्हारा लक्ष्य क्या है ? बस ! सारा डर भाग जाएगा. थैंक्स राजीव अब मुझे कोई डर नहीं लगेगा कहते हुए उसकी बड़ी – बड़ी आँखें थोड़ा और बड़ी हो जाती हैं. यार तुम अपनी आँखों से मुझे डरा देती हो. हद है सब तो कहते हैं कि मेरी आँखें सुंदर हैं और तुम्हे इनसे डर लगता है ? जब तुम इन्हें ऐसे और बड़ा करके देखती हो तब ! ठीक है कोई तो है जो मुझसे डरता है . तुमसे नहीं तुम्हारी आँखों से शेफ़ाली और फिर दोनों ही हँस पड़ते है. पहला सेमिस्टर हम दोनों का ही अच्छा गया अब तक हम कॉलेज के माहौल में रम चुके थे.रोज सुबह – सुबह क्लास के लिए भागमभाग. होस्टल का चाय नाश्ता फिर लेक्चर, प्रैक्टिकल, ब्रेक के बाद लंच और शाम की क्लास ख़त्म होते ही हम सब का थक के चूर होना लेकिन फिर करीब एक-दो घंटे तक साथ बैठना सब एक रूटीन सा हो चुका था. देखते ही देखते चार साल बीत गए और हम दोनों एक दूसरे के बेहद करीब हो गए . मठरी और लड्डू आये हैं घर से बड़ी मुश्किल से तुम्हारे लिए अपनी सहेलियों से छुपा कर लाई हूँ अब खुद ही खाना ये नहीं कि जनाब किसी और को खिला रहे हैं. बैग से स्टील का एक चपटा हुआ टिफिन निकालकर शेफ़ाली मेरे बैग में डाल देती है . बड़ी फिकर हो रही है मेरी इरादे क्या हैं मेमसाहब ? सब ठीक तो है कहते हुए शेफ़ाली का हाँथ पकड़ कर अपनी तरफ खींच लेता है …..

हाँ सब ठीक है ऐसे क्यूँ पूछ रहे हो राजीव ? क्योंकि मै कुछ अलग सा महसूस कर रहा हूँ आजकल क्या तुम भी ? मतलब ? शेफ़ाली मै तुमसे प्यार करने लगा हूँ और अब ये सोचने लगा हूँ कि क्या हम एक साथ पूरा जीवन नहीं बिता सकते ? ये हमारा आखिरी साल है फिर… तुम क्या सोचती हो शेफ़ाली ? मै क्या कहूँ राजीव ? क्या तुम मेरा साथ दोगी ? क्या तुम मुझसे प्यार करती हो ?. शेफ़ाली ने भरी हुई आँखों से कहा हाँ राजीव ! और वो मेरी गोद में सर रख कर रोने लगी . फिर रो क्यूँ रही हो ? क्योंकि हमारे घर में ये रिश्ता कभी नहीं स्वीकार होगा राजीव. लेकिन क्यूँ ? क्योंकि हम एक जाति के नहीं हैं और अंतरजातीय विवाह के लिए मेरे घर में कोई राजी नही होगा . मै हूँ ना शेफ़ाली सब संभाल लूँगा क्या इतना भरोसा नहीं है मुझ पर. शेफ़ाली के आंसू पोछते हुए उसका मुँह अपने हांथो में भरकर अच्छा एक बात बताओ मुझे हुआ तो हुआ तुम्हे मुझसे कैसे प्यार हो गया ? और तुमने कभी बताया भी नही ये तो गलत है कहते हुए राजीव मुस्कुराया और शेफ़ाली शरमा कर राजीव की गोद से उठ कर अलग बैठ गई. क्या राजीव तुम भी ना ! और क्यूँ तुम कब से मुझे चाहने लगे . क्या करें यार कापी – किताबों में नाम लिखते – लिखते कब अपने दिल पे लिख दिया पता ही नही चला बस ! वो आखिरी साल था हमारा मेडिकल का बहुत ही ख़ास साल . एक तो डॉ . बन जाने की खुशी और जल्दी भी तो दूसरी ये कि हम दोनों एक साथ रहेंगे सदा . वक्त कब बीत गया पता ही नहीं चला और हम सब अब डॉ . बन चुके थे और अब सब अपनी –अपनी मंजिल की तरफ जा रहे थे किसी को प्रैक्टिस करनी थी तो किसी को आगे एम् डी की पढ़ाई. शेफ़ाली के घर में उसकी शादी उसके मम्मी – पापा की पहली ज़िम्मेदारी थी. घर में शादी के लिए आई ढेरों तस्वीरें देखकर शेफ़ाली हैरान थी .आज शाम लड़के वाले तुमसे मिलने आयेंगे जैसे ही पापा ने कहा, मै डा. राजीव से शादी करना चाहती हूँ शेफ़ाली बोल पड़ी .क्या ? कौन राजीव शेफ़ाली ? हमने साथ ही पढाई की है पापा बस वो हमारी जाति के नहीं हैं .आप एक बार उनसे मिल कर तो देखिये . शेफ़ाली शायद तुम भूल गई हो कि हम अभी भी इसी समाज में रहते हैं और हम तुम्हारी शादी अपनी ही जाति के लड़के के साथ करेंगे . तुम डा . क्या बन गईं तुम्हे हमारे मान – सम्मान का ख़याल ही नहीं रहा पापा ने थोड़ी गंभीर आवाज़ में कहा. शेफ़ाली रो पड़ी नहीं पापा ऐसा नहीं है लेकिन आप एक बार ..प्लीज़ ! शेफ़ाली तुमने अपने पापा को आज बहुत दुखी किया है वो तुम पर गर्व करते थे और आज तुम अपने पापा से बहस कर रही हो ? नहीं मम्मी ऐसा नहीं है हम दोनों एक दूसरे से प्यार करते हैं और हमारे साथ के कितने ही डा . हैं जिनकी शादियां भी हो रही हैं आप लोग एक बार राजीव से मिल तो लीजिए मम्मी वो बहुत अच्छे हैं हम एक साथ खुश रहेंगे आप प्लीज़ पापा से कहो ना . शेफ़ाली तुम्हे अपने मन का करना है तो तुम्हारे लिए इस घर में कोई जगह नहीं है इस बार पापा गुस्से में बोले. अपने आप को संभालो शेफ़ाली कहते हुए मम्मी मेरे आँसूं पोछने लगी हालांकि उनकी आँखे ज़रूर भीग गईं थीं …

हम दोनों अपने – अपने परिवारों के रिश्तों में जकड़े हुए थे और उनकी नामंजूरी ने हमे तोड़ दिया था. उन्हें प्रेम विवाह से कोई आपत्ति नहीं थी लेकिन प्रेम अपनी जाति के लड़के या लड़की से होना चाहिए बस ! उन्हें कौन समझाता कि प्रेम दो इंसानों के बीच होता है जातियों के बीच नहीं लेकिन हमारी हर कोशिश भरभरा कर ढेर हो गई . उन्हें दुःख देकर हम अपना घर नहीं बसा सकते थे और माता – पिता की ख़ुशी से बढ़ कर कोई ख़ुशी नहीं हो सकती है हमे कोई अधिकार नहीं कि हम उन्हें तकलीफ दे अतः हमने खुद को तकलीफ दी और जुदा हो गए एक दूसरे से इस वादे के साथ कि चाहे कुछ भी हो जाये हम खुश रहेंगे सदा ….. हमने फैसला किया था कि हम जीवन के हर पल को पूरी इमानदारी के साथ जिएँगे . जीवन में आगे बढ़ेंगे अपने मम्मी – पापा की पसंद से शादी भी करेंगे और उसे निभाएंगे भी . हम अपने अतीत का कभी ज़िक्र ही नहीं करेंगे और जान बूझ कर एक दूसरे से कभी नहीं मिलेंगे लेकिन हाँ यदि कभी गलती से टकरा गए तो अनजान भी नहीं बनेंगे और मैंने ये फ़ैसला निभाया भी जैसा मेरे घर वालों ने चाहा मैंने वही किया और मेरे जीवन में मेरी हम सफ़र बन कर दिव्या शामिल हो गई . दिव्या एक बेहद सुलझे विचारों की लड़की है और उसे नौकरी करने से अधिक बेहतर घर संभालना लगता है बल्कि इतने सालों में एक वही है जिसे सभी का खयाल है मै तो इतना बिजी रहता हूँ फिर भी वो कभी शिकायत नहीं करती . मेरे दो बेटे हैं और हम एक साथ बहुत खुश हैं . लेकिन क्या शेफ़ाली ने भी अपना वादा निभाया होगा ? ये सवाल मुझे बेचैन कर गया फिर खुद ही जवाब भी कि हाँ क्यूँ नहीं ज़रूर उसने भी हमारे वादे का मान रखा होगा. पिछले बीस सालों में हम न कभी मिले न कभी हमने एक दूसरे के बारे में कुछ भी जानने की कोशिश की हाँ मुझे ये ज़रूर पता था कि हम यादों में कभी जुदा नहीं हुए लेकिन आज फेस बुक पर शेफ़ाली का इतना छोटा सा मैसेज न जाने क्या – क्या सवाल ज़हन में पैदा कर रहा है . कैसी है वो ? कहाँ है वो ? शादी हो गई ? बच्चे ? पता नहीं क्या –क्या …उसकी प्रोफाइल सिर्फ दोस्तों के लिए ही खुली है अतः वहाँ से भी कुछ नहीं पता कर सका सिवाय इसके कि वो अब भी लखनऊ में ही है शायद !
मै तो लखनऊ तब से गया ही नहीं या ये कह दो कि वो शहर मुझे पसंद ही नहीं उसने मुझसे मेरी शेफ़ाली को अलग किया था . बीस साल हो गए मै इस सपनो की नगरी मुंबई का हिस्सा बन चुका हूँ साथ ही मेरी पत्नी दिव्या मेरे जीवन का और मेरे दोनों बेटे हमारे जीवन का . ज़िंदगी कितनी तेज़ी से गुज़र गई ,बीस साल हो गए ? पूरा दिन मै बेचैन रहा और जैसे ही वक्त मिलता केबिन में जाकर अपना फेस बुक चेक करता कि कहीं कोई मैसेज तो नहीं ? बार – बार अपना फ़ोन देखता कि कहीं कोई मिस कॉल तो नहीं . इतना लम्बा दिन है आज दो – दो सर्जरी थीं आज सुबह से फिर उसके बाद ओपीडी के मरीज़ रोज तो वक्त कब गुज़र जाता है ख़बर नहीं होती लेकिन आज का दिन है कि कट ही नहीं रहा बस मुझे बेचैन किये जा रहा है. थक कर कुर्सी को पीछे करके सर की टेक कुर्सी के बैक से लगा कर आँखें बंद कर लेता हूँ कि थोडा आराम कर लूँ तभी शाम के करीब सात बजे एक अन नोन न. से कॉल आती है मेरे फ़ोन पर मै जल्दी से फ़ोन उठता हूँ कि शायद ये शेफ़ाली हो और मेरा अंदाजा बिलकुल सही होता है सुबह के इतने लम्बे इंतज़ार के बाद उधर से वही आवाज़ “ हेलो राजीव , मै शेफ़ाली ” पहचाना ? ओह ! हाय कैसी हो, कहाँ हो ? हाँ पहचानूँगा क्यूँ नहीं. “ यहीं मुंबई में हूँ किसी काम के सिलसिले में आई थी सोचा इस बार आप से भी मिल लूँ ” .यहीं मुंबई में, तो क्या इसे मालूम है कि मै यहाँ मुंबई में रहता हूँ ? और इस बार, से क्या मतलब ? क्या शेफ़ाली मुंबई आती रहती है ? लेकिन कैसे / क्यूँ ? मै मन ही मन सोचने लगा . मतलब क्या शेफ़ाली को मेरे बारे में सब पता है क्या वो अब भी ? न जाने कितने सवाल एक साथ मुझ पर हावी हो गए. “ हेलो ” क्या हुआ राजीव ? शेफ़ाली की आवाज़ ने मेरा ध्यान खींचा . और मैंने खुद को सँभालते हुए कहा हाँ शेफ़ाली मै भी तुमसे मिलना चाहता हूँ बताओ कब कहाँ मिलना है ? मै खुद तुमसे मिलने आ जाता हूँ .
“ तो फिर मिलते हैं तुम्हारे हॉस्पिटल के ठीक सामने सड़क पार करते ही बाईं तरफ जो कॉफ़ी बीन कैफ़े है वहीँ पर ठीक आठ बजे ” कहते हुए शेफ़ाली ने फ़ोन रख दिया . और मै कुछ देर तक अपनी सीट पर चुपचाप ऐसे बैठा रहा जैसे भाव शून्य. सब पता है इसे तो ये भी कि मेरा हॉस्पिटल कहाँ है उसके सामने का कैफ़े तक . क्या शेफ़ाली को मेरे बारे में सब पता है ? बीस साल हो गए लेकिन इतने सालों बाद भी शेफ़ाली की आवाज़ में वही खनक और वही सौम्यता थी , क्या शेफ़ाली सब जानती है ये सवाल बेचैन कर रहा है मुझे और मैंने तो उससे कुछ पूछा भी नहीं ये भी नहीं कि वो है कहाँ इस वक्त ? लेकिन इतना ज़रूर समझ गया कि वो मेरी व्यस्तताओं से अवगत है तभी उसने मेरे हॉस्पिटल के पास ही मिलने के लिए कहा होगा उसका इतना केयरिंग नेचर अभी भी नहीं बदला. कुछ भी हो जाये उसकी वजह से किसी को तकलीफ न हो इस बात का ध्यान तो वो हमेशा से ही रखती रही है .
कैफे में ब्लैक कलर की कॉलर वाली टीशर्ट और डेनिम जींस में बैठी शेफ़ाली बिलकुल वैसी ही लगी जैसी बीस साल पहले थी वही बड़ी – बड़ी और बोलती हुई आँखें जो उसके हेलो कहने से पहले ही बोल पड़ती थीं और होठों पर फैली हुई लम्बीईईईई सी मुस्कान जो किसी को भी अपनी तरफ़ खींच ले. बस उसकी लम्बी चोटी गायब थी और बाल पहले से काफी छोटे थे हाँ शायद वजन पहले से थोडा अधिक था . बिना किसी औपचारिकता के हम एक दूसरे के ठीक सामने बैठ गए और आँखें एक दूसरे में गड गईं . कितना कुछ पूछना था मुझे लेकिन अब एक सवाल भी नहीं निकल रहा था मुँह से . कैसे हो ? यह भी पहले शेफ़ाली ने पूछा. हाँ अच्छा हूँ और अच्छा लगा तुम्हारा यूँ अचानक मिलना. तुम सुनाओ कैसी हो ? मैंने पूछा लेकिन उसके जवाब से पहले ही शेफ़ाली ने कहा अचानक नहीं राजीव मुझे इस बार मिलना था तुमसे इस लिए मैंने तुम्हे मैसेज किया अन्यथा मै तो पिछले १५ वर्षों से यहाँ हर महीने ही आती हूँ अपने हॉस्पिटल के काम से लेकिन कभी जानबूझकर एक दूसरे की लाइफ़ में नहीं आयेंगे ये कहा था हमने और इसी वजह से मै कभी आप से नहीं मिली लेकिन आज खुद को रोक नहीं सकी राजीव. मुझे लगा कि हम क्यों न मिले ? और हम क्यों नहीं मिल रहे हैं एक दूसरे से ? हम किससे भाग रहे हैं क्या हमने कोई गुनाह किया था कभी ? क्या प्यार गुनाह है ? हमने तो सभी की ख़ुशी की खातिर अपने प्यार तक को भुला दिया फिर ? इस सवाल ने मुझे बेचैन कर दिया था राजीव क्या हम इतने कमज़ोर हैं कि अपने ही लिए गए फ़ैसले पर कायम नहीं रह सकेंगे ? जब हम उस उम्र में इतना बड़ा फैसला ले सकते हैं और पूरी ईमानदारी से उसे निभाते भी हैं तो फिर क्यूँ हम अजनबी बने हैं इतने सालों से एक दूसरे से ? मेरा भी परिवार है पति है ,बच्चें हैं और मैं बहुत खुश हूँ संतुष्ट भी फिर सिर्फ इस वजह से कि हमने कभी कोई वादा किया था अतः हम नहीं मिल सकते कहाँ तक सही है राजीव आप ही बताइये ? एक सबसे अच्छे दोस्त की कमी लगातार पिछले बीस वर्षों से खल रही है और ये कमी कहीं से भी नहीं पूरी हो सकती थी इस लिए आज खुद को तुमसे मिलने से नहीं रोक पाई …..

शेफ़ाली बोलती गई और मै चुपचाप सुन रहा था साथ ही मुझे आश्चर्य हो रहा था ये जानकर कि शेफ़ाली कितना सही कह रही है जबकि मैंने कभी इस तरह से सोचा ही नहीं था . हाँ मै उसे याद तो करता था सदा ही लेकिन बस हमेशा उसी वादे में जकड़ा रहा कि हमे कभी नहीं मिलना है. हम दोनों इतने सालों तक एक दूसरे के सबसे अच्छे दोस्त रहे और फिर प्यार हुआ हमे और फिर पिछले बीस वर्षों से हम अजनबी रहे क्यों ? जबकि हम कभी अजनबी थे ही नहीं. आज हम दोनों ही अपने-अपने परिवार के साथ खुश हैं हमारी ज़िंदगी में कोई कमी नहीं है सिवाय एक दोस्त के फिर क्यूँ न हम इस अजनबी बनी हुई दीवार को गिरा दें सोचते हुए मैं तुरंत घर फ़ोन मिला देता हूँ फ़ोन दिव्या ही उठाती है मै बोलता हूँ कि दिव्या पता है “ आज अचानक हमारी बैच मेट शेफ़ाली मिली वो किसी काम के सिलसिले में लखनऊ से यहाँ आई हुई है, क्या हम उसे आज डिनर पर अपने घर बुला लें ? ” दिव्या को तो हमेशा ही अच्छा लगता है कि उसके घर लोग आयें और वो पूरे दिल से सभी का स्वागत करती है. हाँ राजीव क्यूँ नहीं ज़रूर, मै डिनर की तयारी करती हूँ आप उन्हें ज़रूर बुलाइए कहते हुए दिव्या फ़ोन रख देती है . उधर शेफ़ाली अपने पति कार्तिक को बता रही थी कि आज वो अपने दोस्त राजीव से मिली है और उसे थैंक्स भी कह रही थी कि कार्तिक आप नहीं होते तो आज मै राजीव से नहीं मिल पाती. थैंक्स कि आप ने मुझे समझा भी और समझाया भी . लव यू कार्तिक मेरी ज़िंदगी में आने के लिए और उसे संवारने के लिए. आज आप ने मुझे बरसों बाद मेरे दोस्त से मिलवाया है, मै अभी राजीव के साथ उसके घर डिनर पर ही जा रही हूँ और आज पहली बार उसकी पत्नी और बच्चों से मिलूंगी. और हाँ कल दोपहर ठीक एक बजे मेरी फ्लाईट वहाँ पंहुचेगी मै सीधे आपके पास हॉस्पिटल ही आऊँगी आप बस ड्राइवर को भेज दीजियेगा. और बाय ..लव यू …टेक केयर कल मिलते हैं कहते हुए शेफ़ाली ने फ़ोन काट दिया. चले राजीव, दिव्या इंतज़ार कर रही होगी कहते हुए शेफ़ाली मेरे साथ मेरी कार में बगल वाली सीट पर बैठ गई और फिर न जाने हम दोनों ने कहाँ – कहाँ की और अपने बैच के हर किसी के बारे में कितनी बातें की. इतना खुल कर तो मै पिछले बीस सालों में कभी हँसा ही नहीं था जितना कि आज . आज मन को बहुत हल्का लग रहा है जैसे कि न जाने कितना भार इतने बरसों से इस मन पर था और आज अचानक वो गायब हो गया है. यूँ लगा बीस सालों के थके हुए जकड़े हुए मन को आज राहत मिली है ……..
घर पँहुचते ही दिव्या हमेशा की तरह गर्म जोशी और अपनत्व के साथ शेफ़ाली का स्वागत करती है और शेफ़ाली भी जैसे कि अपनी किसी पुरानी सहेली से मिल रही हो इस तरह दिव्या के साथ घुल मिल जाती है . दोनों बेटे शेफ़ाली आंटी द्वारा लाये गए अपने – अपने गिफ्ट पाकर खुश हो जाते हैं और थैंक्यू आंटी कह कर अपने कमरे में चले जाते हैं. खाने के बाद स्वीट डिश खाते – खाते दिव्या पूछ बैठती है कि आप दोनों जब इतने अच्छे दोस्त थे तो फिर इतने सालों तक एक दूसरे की कोई ख़बर क्यों नहीं ली ? और मै कोई जवाब तलाशूं उससे पहले ही शेफ़ाली बोल पड़ती है हाँ वही तो दिव्या ये जनाब पढ़ाई ख़त्म होते ही एम् . डी . की पढ़ाई के लिए मुंबई आ गए और मैंने वहीँ लखनऊ में ही नौकरी कर ली और फिर जल्द ही मेरी शादी भी हो गई और तुम तो जानती ही हो कि शादी के बाद ज़िंदगी में कितनी सारी नई ज़िम्मेदारियाँ शामिल हो जाती हैं बस समय का पता ही नहीं चला . नई ज़िंदगी और साथ में नौकरी भी ,फिर बच्चे …बस इन सभी के साथ अपनी ज़िम्मेदारी पूरी करते –करते अब जाकर ये अहसास हुआ कि ज़िंदगी में पीछे क्या छूट गया है और बस उसी अहसास ने मुझे अपने पुराने दोस्तों की खोज के लिए मजबूर कर दिया . अचानक सर्च करते – करते जैसे ही मुझे राजीव की प्रोफाइल दिखी मैंने झट से इन्हें मैसेज किया और आज हम सब एक साथ आपके घर पर हैं.
हाँ तुम सही कह रही हो शेफ़ाली ज़िंदगी तो सच में सभी की बहुत बिज़ी हो गई है . राजीव को अपने खाने तक की सुध नहीं रहती इनका पूरा समय हॉस्पिटल में ही बीत जाता है फिर घर आकर बच्चे भी पापा के साथ समय बिताना चाहते हैं इन सबके बीच दोस्तों को याद करने की भी फुरसत नहीं मिलती . अच्छा किया कि ये पहल तुमने कर दी कम से कम इसी बहाने मुझे एक अच्छी सहेली तो मिल गई . बातें करते – करते रात के एक बज गए . अब मुझे चलना चाहिए कहते हुए शेफ़ाली उठ जाती है . नहीं इतनी रात को आप अकेले क्यूँ जायेंगी और जायेंगी ही क्यूँ यहीं रुक जाइए क्या ये आपका घर नहीं ? दिव्या कहती है . नहीं ये बात नहीं अगली बार जब आउंगी तो ज़रूर रुकूँगी दिव्या लेकिन कल सुबह की मेरी फ्लाईट है और सारा सामान होटल में है , टैक्सी भी बुक है इसलिए अभी इजाज़त दीजिये. अच्छा ठीक है लेकिन आपको होटल हम अकेले नहीं जाने देंगे . राजीव आप शेफ़ाली को छोड़ आइये मै साथ नहीं आ पाउंगी क्योंकि बच्चे सो रहे हैं . राजीव और शेफ़ाली दोनों चले जाते हैं . रात का वक्त है दोनों खामोश है होटल पँहुच कर दिव्या बस यही कहती है कि राजीव तुम लकी हो कि दिव्या जैसी सुलझी हुई जीवन साथी तुम्हे मिली है . आज तुम्हे इस तरह खुश देखकर मुझे हमारे जीवन से कोई भी शिकायत नहीं है . क्या हुआ कि हम नहीं मिले ….उससे अच्छा तो आज ये लग रहा है कि हम आज मिल सके हैं और ये मिलना अब सदा के लिए है इसमें कोई बिछोह नहीं है…..है ना कहते हुए शेफ़ाली चली जाती है मै अकेले वापस लौट रहा हूँ अपने घर अपनी दिव्या के पास . एफ़.एम् में गाना बज रहा है ‘ ये जीवन है इस जीवन का यही है ..यही है …यही है …रंग रूप !

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