वरेण्य सरस्वती-पुत्र डॉ.शिव मंगल सिंह सुमन


वरेण्य सरस्वती-पुत्र डॉ.शिव मंगल सिंह सुमन का पैत्रक निवास ग्राम झगड़पुर (उन्नाव ) मेरे ग्राम सरायं मंगली से मात्र १६ कि.मी .दूर है । २१ मार्च १९९३ का दिन था . पिता जी ने कहा-सुमन जी आए हुए हैं,चलोगी तो नहीं . मै बी.ए. की विद्यार्थी थी . पिता जी के साथ झगड़पुर पँहुच गई . मन में तरह-तरह की की भाव तरंगे उठ रही थीं की इतना बड़ा साहित्यकार कैसा होगा ? हमारा उनके दरवाजे पर पँहुचना और उनका अपने घर से बाहर निकलना, संयोग से एक साथ हुआ .हमने उन्हें प्रणाम किया ,उन्होंने हमारा परिचय पूछा ।हम चारपाई पर बैठ गए और वो सामने रखी कुर्सी पर . जलपान हुआ साथ ही चाय पान भी. सुमन जी ने मुझसे पूछा की मुझे कभी पढ़ा है . मैंने हाईस्कूल कक्षा में पढ़ी उनकी रचना की एक पंक्ति सुना दी -” इतिहास न तुमको माफ़ करेगा याद रहे,पीढियां तुम्हारी कथनी पर पछताएँगी ” सुमन जी प्रसन्नता से गदगद . घरेलू और सामाजिक हालचाल के विमर्श के बाद पिता जी ने सुमन जी से कुछ ऐसी चर्चा कर दी कि वे बोले लो सुनो – “हार में क्या जीत में /किंचित नहीं भयभीत मै /संघर्ष पथ पर जो मिले / यह भी सही वह भी सही /हार मानूँगा नहीं/ वरदान मांगूंगा नहीं .” और अब वे अपनी पूरी रौ में आ गए थे . निराला विरचित ” राम की शक्ति पूजा ” के कुछ अंश उन्होंने सुनाए और यह भी बताया कि निराला जी इस कविता को लगभग इसी शैली में सुनाते थे – मुझसे इक्कीस . काव्य पाठ करते हुए सुमन जी को देखना-सुनना एक विराट अनुभव था . उनकी ज़ुल्फें, उनकी भौंहें ,उनकी आँखें भी उनके साथ-साथ मुदित रहते थे . उनके फड़कते हुए नासापुट ,लरजते हुए होंठ ,धवल दन्त पंक्ति ,स्वरों का आरोह-अवरोह तथा आंगिक संचालन अद्भुत वशीकरण लिए हुए था .’नैकु कही बैननि,अनेकु कही सैननि’ कि पंक्ति प्रत्यक्ष हो रही थी .एक अपूर्व एकांकी का मंचन हो रहा था .सुदूर अंतरिक्ष में कुछ निहारते उनके जल भरे नेत्रों को देख कर लग रहा था जैसे श्री राम उनके सामने ही पूजन कर रहे हों और वो उसका प्रत्यक्ष वर्णन हमे सुना रहे हों .
थोड़ी देर बाद मुझसे मुखातिब हुए और कहा तुम तो मुझे ब्याज में मिली हो, आज तुमसे ही बात करनी है. कुछ पूछना है ? मै इस तैयारी से तो गई ही नहीं थी फिर भी उनसे जो दो चार बातें कर सकी – वे प्रस्तुत हैं –
इंदु : भगवान श्री राम के बारे में आप क्या कहेंगे ? (उस समय विश्व हिन्दू परिषद का शिला पूजन आन्दोलन जोरों से चल रहा था )

सुमन जी : भगवान श्री राम तो भारतीय संस्क्रति कि प्राण धारा हैं . आदर्श और मर्यादा के जीवन मूल्य उनको पाकर धन्य हो गए हैं . अफ़सोस तो यह है कि जिन श्री राम ने सोने कि लंका को जीतने के बाद भी उसे अपने राज्य में विलीन नहीं किया और वहां से सोने का एक छल्ला तक अयोध्या नहीं लाये थे – उन्ही श्री राम के नाम पर आज जगह-जगह धन-संग्रह किया जा रहा है ,यह कलयुग की विडंबना ही तो है …. और इसके बाद श्री राम पर जब वो बोलने लगे तो लगा कि बाल्मीकी,भास्,कालिदास,भवभूति,केशवदास और तुलसीदास सब एक साथ उपस्थित हो गए हों .

इंदु : अच्छा गोस्वामी तुलसीदास जी के बारे में कुछ बताइए ?

सुमन जी : गोस्वामी जी ने तो समाज को जीने कि राह दिखाई है . तुलसी बाबा कि भक्ति , उनका ज्ञान तो अद्वितीय है ही – कविता भी उनकी लेखनी के स्पर्श से प्रणम्य और वंदनीय हो गई है .वे तो हम सब से इतना ऊँचे उठे हुए हैं कि पूजा में उठे हुए हमारे हाथ उनके पैर के अंगूठे के नाख़ून कि कोर को भी स्पर्श नहीं कर पा रहे हैं …अब सुमन जी के शब्द तुलसी का अभिषेक कर रहे थे .

इंदु : बैसवारा के होते हुए भी यहाँ के अमर सपूत राव राम बख्श सिंह, राना बेनी माधव तह चंद्रशेखर आजाद पर आपकी रचनाएँ नहीं मिलती हैं ?

सुमन जी : हाँ , मुझे यह काम भी अब करना है. मै इन अमर सपूतों के शहीद स्थलों और स्मारकों पर गया हूँ . शहीदों के रक्त को अपने अन्दर जज़्ब करने और उसे संजोने वाली पावन धरा पर तो मुझे पैर धरने में भी बड़ा संकोच हो रहा था – वहाँ तो सिर के बल जाया जाये फिर भी कम होगा .

इंदु : अंतिम प्रश्न के रूप में मैंने इंदिरा गाँधी जी कि शहादत की चर्चा कर दी …

सुमन जी : इंदिरा जी तो दिव्य पौरूष वाली महिला थीं . उनकी क़ुर्बानी तो इतिहास के पन्नों में रक्ताक्षरों से अंकित हो चुकी है …. इस संसार में सोलह श्रृंगार करने वाली महिलाएँ तो बहुत हुई हैं और होती रहेंगी परंतु राष्ट्र के लिए छाती पर सोलह गोलियाँ खाने वाली महिला अकेली इंदिरा जी ही थीं ….. वे तो म्रत्यु का वरण कर अमरत्व की राह पर चली गईं …
अब सुमन जी ख़ामोश थे उनका मौन बोल रहा था – उनकी आँखें बरस रही थीं और वे एक बार फिर से अन्तरिक्ष में निहार रहे थे . कुछ पलों के बाद वातावरण हल्का हुआ . हमने उनसे आशीर्वाद लिया और विदा भी . वे कुर्सी से उतर कर हमे विदा करने को दस कदम हमारे साथ भी चले .यही उनसे मेरी पहली और अंतिम मुलाकात रही .

4 टिप्पणियां

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4 responses to “वरेण्य सरस्वती-पुत्र डॉ.शिव मंगल सिंह सुमन

  1. पिछले दस बरसों से यह बातचीत ब्लॉग के ड्राफ्ट में सेव थी. दस बरस पहले किसी ने यह वार्ता माँगी थी किसी पत्रिका के लिए किन्तु न मुझे वह पत्रिका प्राप्त हुई और न ही यह पोस्ट मैंने कभी शेयर करी. आज ब्लॉग पर ड्राफ्ट चेक करते समय यह महसूस हुआ कि अब इसे ड्राफ्ट से बाहर आ जाना चाहिए.

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  2. डॉ शिवमंगल सिंह सुमन… साहित्य के पर्यायों में से एक… आपका सौभाग्य ऐसे महान व्यक्तित्वों के सात वार्तालाप हो जाए… एक किसी गोष्ठी में पिताजी ने उनसे मिलवाया था… सच में बड़े ही रोमांचल पल थे वे हमारे लिए…

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  3. वाह! लाजवाब!!
    बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
    बहुत ही सुंदर लिंक धन्यवाद आपकाDiwali Wishes in Hindi Diwali Wishes

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