क्या लिखूँ ?
खुद पर
तुम पर
रिश्तों पर
प्यार पर
क्यों लिखूँ ?
जब झूठ ही लिखना है।
कभी धान
कभी खील
कभी लाई
और कभी उसके
चावल को ही
गला देना है जब।
कैसे लिखूँ उस
कनकी की पीर
अलग कर दिया उसे भी
छानकर, पटक कर।
उड़ती हुई भस
सब ढँक देती है
देखने को कुछ नहीं
कहने को कुछ नहीं
लिखने को कुछ नहीं।
क्या लिखूँ ?
खुद पर
तुम पर
रिश्तों पर
प्यार पर
क्यों लिखूँ ?
जब झूठ ही लिखना है।
bahut sundar bhavpurn rachna Indu !
खील….. लाई…..कनकी की पीर….छानकर, पटक कर…उड़ती हुई भस …. in shabdon ke prayog ne is rachna ko anupam saundarya pradan kiya hai…. aaj kal aise paramparik shabd sunne ko bahut kam milte hain … man prasann ho gaya..
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बहुत-बहुत आभार मंजू जी, रचना पसंद आई जानकर मन हर्षित है।
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It’s beautifully crafted, done full justice to the feelings/expressions.
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Thanks a lot…
REgards
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सुन्दर अभिव्यक्ति… मन के उहापोह को शब्दों में बखूबी पिरोया
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धन्यवाद, उपेन्द्र जी .
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क्या लिखूँ ?”आप” पर ….
आपका बहुत बङा फ़ैन हो गया हु,
औंर आपका अभिव्यक्ति मैं अपने दोस्तो को सुनता हु।
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धन्यवाद राहुल रविराज जी, आप को हमारी रचनाएँ पसंद आती हैं जानकार ख़ुशी हो रही है।
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Suder aduvitye abhivakti, Sabdoo ka jadu kamal hai ……..
Lakin jab kuch nahi hota sab souny hoo jata hai to ekk Naveen prarambh hota hai ~ Gahan Andhkar ke bad Nav prabhat hoti hai…………..
Sadhuvad
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आभार, पवन जी ..
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मन का कभी कभी रिक्त होना सुखद है..
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जी सहमत हूँ आप से प्रवीण जी .
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ये केसा भेद ,एहसास के कागज पर टूटे मन की कलम से सच ने लिख दिया सब कुछ ….सुंदर भाव है आपकी रचना के
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धन्यवाद …
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bohot hi behtareen !! lovely read !!
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लाजवाब प्रस्तुति | बढ़िया लेखन | विचारों की शिष्ट, सुन्दर तथा विचारात्मक अभिव्यक्ति को प्रणाम |
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wese aap sahaj likhti hai khub likhti hai dub kar likhti hai.
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वाह …सही कहा …कभी कभी शब्द कम पड़ जाते हैं कुछ ज़ज्बात लिखने को
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