गिरगिट


पल में रंग बदलने को जाना जाता है गिरगिट
बदलते रंगों के इन्सान से जब ताज उसका छूटा
अपनी इस कला का, अभिमान उसका टूटा।
उफ़ ! ये कला गज़ब की, था मै इसमें पारंगित
अब देख इंसानों को, सीखता हूँ मै भी घ्रणित।
जान बचाने को अपनी घात लगाने को शिकार की
मुझसे भी कहीं तेज़, इंसान बदल लेता है रंग-रूप
पर समझ न आती एक बात मुझ बेज़ुबां को
कहावत में सदा क्यूँ मेरा नाम आता ?
क्या यहाँ भी इंसान का न रंग नज़र आता।
ओह ! बेरंग कर लिया खुद को या मिल गया है गंद में
जीने के लिए गिरगिट भी न कभी इतना बदल पाता।
अच्छा है गिरगिट हूँ , इंसान नहीं मै
जो हूँ वही हूँ, नहीं कोई छल मै।
गिरगिट है मेरा नाम बदलना रंग ही है काम
किसी दूजे का आवरण, मै न कभी चुराता
काश ! इंसान भी कभी सिर्फ इंसान बन पता !!!

15 टिप्पणियां

Filed under कविता

15 responses to “गिरगिट

  1. bahut badiya .. aapne sahi baat ki .. insaan bhi girgit ki tarah rang badalta hai!

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  2. वाह … बहुत सही कहा आपने इस अभिव्‍यक्ति में

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  3. यशवन्त माथुर

    क्या यहाँ भी इंसान का न रंग नज़र आता।
    ओह ! बेरंग कर लिया खुद को या मिल गया है गंद में
    जीने के लिए गिरगिट भी न कभी इतना बदल पाता।

    बिलकुल सच बात कही

    सादर

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  4. Great insightful post. Loved each and every line.
    Kudos!!!

    Find out some time to check my poems too 🙂
    I’m just a newbie 🙂

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  5. आपकी यह बेहतरीन रचना शनिवार 23/02/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!

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  6. ओह ! बेरंग कर लिया खुद को या मिल गया है गंद में…
    काश ! इंसान भी कभी सिर्फ इंसान बन पता !!!
    वाह, सच के बेहद करीब एक कविता|

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  7. अभिमान उसका टूटा।
    साधू साधू

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  8. बहुत खूब क्या बात है बहुत सुन्दर पक्तिया ,सार्थक रचना

    सच कहा हम गिरगिट को तो बदनाम ही करते हैं इंसान तो हजारो रंग बदलता है और आज का इंसान कहा इंसान रहा है पशु से भी बतर हो गया है कम से कम पशु को इतना तो ज्ञान होता अहि की उसका भी कोई मालिक है इस को तो ये भी नहीं पता की कोई अपना पराया है

    मेरी नई रचना

    खुशबू

    प्रेमविरह

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  9. अनाम

    बेहतरीन …….और सही
    आप भी पधारो स्वागत है …
    pankajkrsah.blogspot.com

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  10. सुशील कुमार जोशी

    बढ़िया

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