प्यार है समंदर
समंदर की लहर मै
किनारा हो तुम
आऊँ बार – बार
समाऊँ बार – बार
न ठहर पाऊँ लेकिन !
तुम्हे समंदर की प्यास
समंदर को लहर की
और लहर तुझमे समाने को
मिटती रही उम्र भर
हर पल लिया नया जनम
हर पल का मिलन
और फिर पूरा समर्पण
लहर दर लहर
उछलता रहा समंदर …
बहुत खूब कहा आपने.
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