स्पर्श मात्र से !


पानी की इक बूँद सामान तुम

स्पर्श मात्र से

हरी हो उठती हूँ

आ जाती है सूखे

कुम्हलाए पत्तों में जान

और हवा के साथ

जी उठता है जीवन

कि तुम्हारा दिखना भर

उमड़ने लगते हैं बादल

घिर आती हैं घटाएँ

चूम जाती हैं मुझे

दे जाती हैं पैगाम

कि बस

आने को हो तुम

और सूख रही जड़ों में

लौट आती है जान

तुम्हारे स्पर्श मात्र से !

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