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उड़ना है मुझे फिर


एक मोर बेहद ख़ूबसूरत,नहीं आना चाहता था ज़मीन पर सदा पेड़ की सबसे मजबूत शाखा पर बैठ निहारता ज़मीन को और डर जाता कि ज़मीन पर तो खतरा है बहुत मै यहीं सुरक्षित हूँ । यहीं से ही ज़मीन की सुन्दरता को देखना ठीक है सोचता वो मन ही मन । अचानक एक रोज़ एक इंसान ने देख लिया उस मोर को और उसके ख़ूबसूरत पंखों को बस देखता ही रह गया,उसने सोचा कि कितना अच्छा हो अगर ये ख़ूबसूरत पंख मुझे मिल जाएँ तो इन्हें मै अपने घर में सजाऊँ । बस ! धरा रूप उसने भी एक बलशाली मोर का, जा पँहुचा उसके समक्ष उसी डाली पर । फैलाया मोह जाल और फाँस लिया उस सुन्दर मासूम मोर को
दिलाया भरोसा चलो ज़मीन पर मै हूँ तुम्हारे साथ,ज़मीन के लोग इतने भी बुरे नहीं और मै सदा तुम्हारे साथ ही रहूँगा,बस अपनी मर्जी से कहीं मत जाना और जहाँ मै कहूँ वहीँ रहना,जिस पर मै कहूँ उसी पर भरोसा करना । सब बातें मान, कर भरोसा चल पड़ा सुन्दर मोर उस बलशाली मोर के साथ करने ज़मीन की सैर निहारने उन सभी फूलों को जो दूर से कुछ धूमिल नज़र आते थे उसे । ज़मीन की सख्त सतह पर उतरते ही सुन्दर मोर को अपनी शाख जैसी मजबूती का अहसास हुआ । सुन्दर फूलों से भरी क्यारी में जैसे खिल उठा वो , अपलक देखता रहा उन गुलाबों को और खो सा गया उस मनभावन ख़ुशबू के बीच कि तभी खीँच लिए पीछे से पूरी ताकत से किसी ने उसके सुन्दर पंख । कराह उठा वो दर्द से तेज़ ! जीते जी किसी को इस तरह मारना , दर्द भी न बयाँ हो सका उसका । चीख भी ख़ामोश हो गई उसकी जब देखा उसने कि ये मौत उसे कोई और नहीं वही बलशाली मोर दे रहा है और मुस्कुराते हुए वह अपने असली भेष में आ गया, देखो कैसे मैंने तुम्हे ज़मीन पर उतारा क्यूंकि चाहिए थे मुझे तुम्हारे सुन्दर पंख अपने मकाँ को सजाने के लिए।
निःशब्द ,स्तब्ध मासूम मोर पड़ा रहा ज़मीन पर जड़वत ! लहूलुहान,पीड़ा से घिसटता रहा और उसकी तकलीफ से बेपरवाह वो छलधारी देखता रहा मुस्कुराता रहा अपनी जीत पर कि आज सबसे सुन्दर मोर के पंख नोच लिए मैंने और अब ये मेरे हो गए हैं सिर्फ मेरे । सजाऊंगा इनसे अपना ड्राइंगरूम,समेट सारे पंखों को चला गया वो । सुन्दर मोर जिसकी सुन्दरता के पंख न थे अब उसके पास खुद को ज़मीन से लगाता ,लोगों की नज़रों से बचाता ,पीड़ा को छिपाता जा छुपा कुछ बड़ी घास और कंटीली झाड़ियों के पीछे । वहाँ से ठीक से उसे अपनी वो मजबूत शाख भी न दिख पा रही थी फिर याद आया कि वो तो उड़ भी न सकेगा अब ।करना होगा उसे फिर से नए पंख उगने का इंतज़ार, उनके बढ़ने का और तब कहीं वापस जा सकेगा वो अपने घर । उड़ेगा ज़रूर वो क्यूंकि ज़मीन पर नहीं रहना उसे, जाना है अपनी शाख के पास और इस बार ज़मीन पर वापस न ला सकेगा कोई उसे ।
मान्यता अपने स्कूल की हिंदी किताब से ये कहानी सुना रही थी मुझे और मै ! मै तो न जाने कहाँ गुम थी कि अचानक उसने कहा – मम्मी क्या हुआ ,आप रो क्यूँ रही हो ये तो एक कहानी है और देखो आखिर में मोर ने पॉजिटिव बात सोची है कि वो उड़ेगा फिर । मान्यता की आवाज़ कानों में पड़ तो रही थी पर अतीत की कुछ चीखें इतनी तेज़ी से सुनाई दे रही थीं कि एक पल लगा किसी ने फिर से खुले ज़ख्मों पर नमक छिड़क दिया वो भी पिसी सुर्ख लाल मिर्च के साथ । खुद को कैसे संभाला था मैंने जब इसी तरह नोच लिया था मेरा भी अस्तित्त्व मेरे सबसे प्रिय दोस्त प्रतीक ने । उफ़ ! कितना असहनीय दर्द था की आज भी मोर की कहानी सुनकर अपना दर्द ताजा सा चुभा । सर में तेज़ दर्द हो उठा ,एक प्याली अदरक की तेज कड़क चाय बनाकर उसके गर्म घूँट लेते हुए पलट जाते हैं कुछ पन्ने प्रतिभा के अतीत के जब कि वो भी थी उसी अल्हड़ उम्र पर जब यौवन खिलता है पूरी तरह .सब उसे उसकी सुन्दरता से जानते थे जो भी उसे देखता बस देखता रह जाता और यदि कोई उसकी आवाज़ सुन लेता तो बस मन्त्र मुग्ध ही हो जाता। प्रतिभा बेहद शर्मीली,संकोची अपने घर की सबसे छोटी ,माँ-पापा और भईया की लाडली थी । जब भी उसे ज़रूरत होती सदा ही ये घनी शाखाएँ उसके साथ होती । गाना सुनने और गाने का शौक उसे बचपन से ही था,उसने कहीं से सीखा तो नहीं था पर फिर भी सुरों पर उसकी पकड़ ज़बरदस्त थी जब भी गाती पूरे दिल से गाती और सुनने वाले उसकी मधुर आवाज़ के दीवाने हो जाते । एक दिन अखबार में एक विज्ञापन देखा कि शहर में ‘गायन प्रतियोगिता’ हो रही है और जो भी गाने के इच्छुक हों भाग लेने के लिए आवेदन कर सकते है । माँ-पापा और भईया के कहने पर प्रतिभा भी जा पहुँचती है ऑडीशियन के लिए। अपना नंबर आने से पहले सभी अपनी-अपनी तैयारी में लगे थे और मुझे तो लग रहा था कि मुझसे गाया ही नहीं जायेगा हमेशा सिर्फ घर वालों और दोस्तों के बीच ही गाया था मैंने । सबसे थोड़ा दूर अलग जा कर एकांत में गाने के बोल दोहराती हुई अभ्यास कर रही हूँ कि तभी एक आवाज़ पड़ती है कानो में – वाह ! इतना मीठा, बहुत सुन्दर गाया आपने । पलट कर देखा तो करीब ६ फुट लम्बा लड़का मुस्कुराते हुए ताली बजा रहा था, आमना-सामना होते ही झट से उसने हाँथ आगे बढ़ाया – हाए, मै प्रतीक माथुर । अभी आपका गाना सुना,कमाल का गाया आपने । सच कह रहे हैं न आप ? मुझे बेहद घबराहट हो रही थी इसलिए मै यहाँ गाने के बोल दोहरा रही थी । मेरा नाम – प्रतिभा है , प्रतिभा नायक । आपने सच में अच्छा गाया है तभी तो मै खुद को रोक नहीं पाया, अब मै भी गाता हूँ और आप बताइयेगा कि कैसा लगा , कहकर प्रतीक ने गाना शुरू किया और मै बस उसे सुनती रह गई । एक खास कुछ अलग लहजा था उसकी आवाज़ में । आप तो बहुत ही अच्छा गाते हैं प्रतीक, आपका सेलेक्शन तो पक्का । आपका भी प्रतिभा ,मुस्कुराते हुए उसने कहा ।
प्रतीक पिछले आठ वर्षों से गायन प्रशिक्षण ले रहा था सो प्रतिभा ने मन ही मन उसे अपना गुरु मान लिया,आप हमे संगीत की बारीकियाँ सिखाएँगे उसने प्रतीक से पूछा । हाँ ! क्यूँ नहीं ज़रूर,वैसे आपके गायन में कोई कमी नज़र आई नहीं हमे फिर भी हर मोड़ पर आपका साथ दूँगा मै । धीरे-धीरे प्रतीक और हम रोज़ ही मिलने लगे,कब प्रतीक मेरे दिल के करीब आ गया मुझे पता ही न चला ये अहसास भी प्रतीक ने ही मुझे दिलाया तब जाकर पता चला कि हम दोनों को ही प्यार हो गया है एक – दूजे से । दुनिया बेहद ख़ूबसूरत हो चली थी, अब बागंबेलिया के फूलों में भी महक महसूस होने लगी थी । साथ-साथ गाना हमे बेहद भाता था धीरे-धीरे हमारे गायन में और निखार आता जा रहा था फिर वो दिन भी आया जब टॉप दो की पोजीशन पर हम दोनों ही पँहुचे और उसी पल मैंने चाहा कि बस अब तो विजेता का ख़िताब प्रतीक को ही मिलना चाहिए , प्रतीक ही डिज़र्व भी करते हैं और इस मुकाम पर मै सिर्फ अपने प्रतीक को ही देखना चाहूँगी, भला इस से ज्यादा मेरे लिए और कोई ख़ुशी हो ही नहीं सकती पर जब वो पहला नाम लिया गया कि इस प्रतियोगिता कि विजेता हैं प्रतिभा नायक । सहसा अपने ही कानो पर यकीं नहीं हुआ ,अच्छा तो लगा पर ख़ुशी अधूरी सी लगी क्यूंकि मै तो सिर्फ प्रतीक का नाम ही सुनना चाहती थी . प्रतीक ने मुझे बधाई दी और उसी वक्त वहाँ से चला गया.ढेरों बधाइयाँ,उपहार और साथ ही कुछ नए गानों के एलबम व एक फ़िल्म में भी गाने का मुझे औफ़र मिला । अगले दिन प्रतीक मुझसे मिला तो कुछ बदला-बदला सा लगा हालाँकि व्यवहार वो पहले जैसा ही कर रहा था पर न जाने कुछ अलग सा महसूस हुआ मुझे । मैंने उसके हांथों में अपना हाँथ रखते हुए कहा कि प्रतीक मै चाहती थी बल्कि मुझे पूरा विश्वाश था कि विजेता तुम ही होगे पर पता नहीं कैसे मेरा नाम…
छोड़ो न यार, जो हो गया सो हो गया कहते हुए प्रतीक ने मेरे हाँथ से अपना हाँथ अलग कर लिया । प्रतिभा मै तुम्हारे लिए बहुत खुश हूँ आखिर तुमसे प्यार जो इतना करता हूँ और मै तो यहाँ तुम्हे इन्वाइट करने के लिए आया हूँ । आज शाम को हम सब दोस्तों ने तुम्हारे लिए एक पार्टी राखी है कहते हुए प्रतीक ने मेरा हाँथ पकड़ लिया और बोला, आई लव यू यार ! मी टू,प्रतीक ! कहते हुए हम दोनों एक दुसरे के गले लग गए । चलो फिर शाम को ठीक ६ बजे तैयार रहना , मै खुद आऊँगा तुम्हे लेने के लिए कह कर प्रतीक चला गया …
आज प्रतिभा बेहद खुश थी क्यूँकि प्रतीक उसके साथ उसकी ख़ुशी में शामिल था आज उसकी आँखों व चेहरे की चमक ही अलग थी और आवाज़ की खनक तो ऐसी कि लगे जैसे सुर की देवी ने ही वीणा के तारों को छू दिया हो । शाम को क्या पहनूँ इसी उधेड़बुन में बैठी थी की माँ आजाती हैं । माँ को देखते ही, माँ आज शाम ६ बजे मेरे दोस्तों ने मेरे लिए पार्टी रखी है सभी मेरे कॉलेज के फ्रेंड्स हैं और कुछ जो कि अभी इस प्रतियोगिता के समय बने हैं , प्रतीक खुद मुझे लेने आएगा माँ मै जाऊं ना । हाँ ! ज़रूर जाओ बेटा ,यही तो मौका है तुमने इतनी बड़ी ख़ुशी दी है कि हम सब को गर्व है तुम पर । पर मै पहनू क्या माँ ?
कुछ भी पहन लो वैसे गुलाबी रंग में तुम मुझे परी सी लगती हो, कोई भी गुलाबी रंग कि ड्रेस पहन लो कहकर माँ चली जाती हैं । लेकिन प्रतीक का तो फेवरेट कलर व्हाइट है कितनी ही बार कह चुका है कि सफ़ेद मेरा सबसे प्रिय कलर है , ‘इस रंग को पहन कर तो तुम मुझसे कुछ भी करवा लो, आई जस्ट लव दिस कलर ‘ .
हाँ ! मै तो अपने प्रतीक की पसंद का रंग ही पहनूंगी सोचते हुए मैंने अलमारी से सफ़ेद चिकन के सूट को निकल कर पहन लिया । कान में भी सफ़ेद मोती की छोटी-छोटी लटकन और गले में चुनरी प्रिंट का दुपट्टा ले लिया । फिर याद आया ओह ! प्रतीक को तो बिंदी भी बहुत पसंद है सो झट से छोटी सी तिल समान काली बिंदी भी सजा ली माथे पर । ठीक शाम ६ बजे प्रतीक घर आ गया आंटी मै इसे ले जा रह हूँ, मेरी जिम्मेदारी है ठीक ८ बजे सही-सलामत आपके पास वापस छोड़ जाऊंगा आप चिंता मत करियेगा . और मै चल पड़ी प्रतीक के साथ । आज प्रतीक ने एक बार भी मेरी तारीफ नहीं की जबकि मैंने तो सब कुछ उसी की पसंद का पहना है फिर भी उसकी नज़र नहीं पड़ी , क्यूँ ? मन में सोच ही रही थी कि इन्डियन कैफे हॉउस आ गया. सारे दोस्त वहाँ पहले से ही मौजूद थे .सभी ने गले लगाया,बधाइयाँ दी और फिर प्रतीक ने मेरा मन पसंद गाना सुनाया । सब कुछ इतना सुखद कि जीवन में इस से पहले कभी कुछ इतना भी अच्छा नहीं लगा था । प्रतीक ने सबको बताया कि पार्टी जल्द ही ख़त्म करनी है क्यूँकि कल से ही प्रतिभा के गानों की पहले एलबम की रिकार्डिंग है इसलिए इसे जल्दी घर जाकर आराम करना होगा और सुबह जल्दी उठकर रियाज़ भी । पर क्या हम सभी इसे यूँ ही जाने देंगे ,कम से कम एक गाना तो इसकी आवाज़ में सुन ही लें पता नहीं कल ये हमे पहचाने भी या नहीं , आखिर बड़ी स्टार हो गई है । सभी दोस्तों ने प्रतीक के साथ शोर मचाना शुरू कर दिया । प्रतिभा…प्रतिभा…प्रतिभा..प्रतिभा ….
और फिर मैंने इस शर्त पर कि मै और प्रतीक एक साथ गायेंगे अपनी दोनों की पसंद का गाना चुना और जब हुमदोनो ने गाना गाया सभी मंत्रमुग्ध हो उठे थे । गीत के बोल थे ही इतने प्यारे ” हम तुम दोनों युगों -युगों से गीत मिलन के गाते रहे हैं, गाते रहेंगे ” सभी दोस्तों ने एक साथ ही कहा था “टच वुड” ! पार्टी यहीं समाप्त हो गई थी सभी अपने-अपने घर जाने की तयारी में थे की प्रतीक मेरे पास आया उसके हाँथ में जूस का ग्लास था उसे मेरी तरफ बढ़ाते हुए उसने प्यार से कहा कि लो जूस पी लो तुम्हे प्यास लगी होगी ,है ना ! लिम्का और कोक सब बहुत ठन्डे हैं यहाँ तक की पानी भी सादा नहीं है इस लिए मै तुम्हारे लिए तुम्हारा मन पसंद औरंज जूस लाया हूँ । प्रतीक का इतने स्नेह इतनी केयर देख मन भर आया था उसके हाँथ से ग्लास ले एक ही घूँट में सारा जूस पी गई मै । अब खुश ! मैंने प्रतीक से कहा और जवाब हाँ ! बहुत खुश । चलो अब मै तुम्हे घर छोड़ दूँ,वरना आंटी को फिकर हो जाएगी आखिर तुम्हे सही सलामत घर पंहुचाना मेरी ज़िम्मेदारी है । हमने सब दोस्तों को थैंक्स कहा और हम घर के लिए चल पड़े । रास्ते में ही मुझे गले में कुछ ख़राश सी लगी,मैंने मजाक में पूछा कि प्रतीक तुमने तो अच्छा जूस पिलाया मेरा तो गला ही छिल रहा है । सब ठीक हो जायेगा यार ,तुम सोचो मत ज़्यादा,कहकर वो गाड़ी चलाता रहा . लो घर आ गाया और अभी भी आठ बजने में पाँच मिनट बाकी है और मैंने तुम्हे सकुशल घर पँहुचा दिया । हाँ ! थैंक्स प्रतीक , कहते हुए मुझे लगा कि ये आवाज़ तो मेरी है ही नहीं और साथ ही गले में तेज़ दर्द हुआ कि अपना ही घूँट निगला न गया । अरे तेरी आवाज़ को क्या हुआ ? तुम्हारा तो गला ही बैठ रहा है शायद ! कहते हुए प्रतीक ने झट से अपने बैग से एक डिब्बी निकाली और उसमे से एक काले रंग की छोटी सी गोली मुझे मुँह में डालने के लिए दी । ये क्या है प्रतीक ? कुछ नहीं चुपचाप खा लो ,आयुर्वेदिक है मै यही खाता हूँ और देखो मेरा गला हमेशा ठीक रहता है तुम्हे भी आराम मिल जायेगा कहते हुए प्रतीक ने मेरे मुह में वो गोली डाल दी । गोली खाते ही कुछ ठंडा सा लगा,अच्छा लागा । थैंक्स प्रतीक ,तुम मेरा कितना ख़याल रखते हो । हे आई लव यू यार,अब मै तुम्हारा ख़याल नहीं रखूँगा तो और कौन रखेगा ? ये दवा तुम रख लो प्रतिभा कल सुबह तुम्हारी रिकार्डिंग है रात में यदि तुम्हे तकलीफ हो तो खा लेना सुबह तक गला बिलकुल ठीक हो जायेगा . चलो अब मै चलता हूँ,फिर मिलेंगे कहते हुए प्रतीक चला तो गया लेकिन कहीं, वहीँ मेरे अन्दर सदा के लिए रह गया । रात गहराई,गला भी गहराया ,गोलियां खाई पर नींद कब आई पता ही ना चला , सुबह माँ की आवाज़ कानो में पड़ी, ” उठ जा मेरी बच्ची आज तो तेरे जीवन की एक नई शुरुआत है ” कहते हुए मेरे बालों पर उनका ममता भरा हाँथ महसूस हुआ और मैंने आँखे खोल दी और जैसे ही कहना चाहा हाँ! माँ
मेरे होंठ तो चले पर मेरी आवाज़ गायब थी । बार-बार मेरा मुँह तो खुल रहा था पर आवाज़ …मौन ! माँ -पापा सब घबरा गए कि ये क्या हुआ ,कैसे, नहीं ऐसा नहीं हो सकता ..
गले में दर्द तो कुछ कम था रात से पर आवाज़ बिलकुल नहीं ! माँ ने प्रतीक को फ़ोन मिलाया पर फोन नहीं उठा । सब मुझे लेकर डॉ. के पास भागे. ना जाने कितनी जाँचें हुई और फिर आया वो सच जिस पर यकीं ही न हुआ । मेरे शरीर में एक तरह का ज़हर था और उससे सबसे ज़्यादा प्रभावित था मेरा गला । वो जूस जिसे मैंने पिया था,पिलाया था किसी ने प्यार से उसमे था वो ज़हर और वो रही सही कसार पूरी करी उन गोलियों ने ठीक वही ज़हर उन गोलियों में भी था । डॉ ने बताया कि इस तरह के ज़हर का असर बहुत धीरे-धीरे शरीर पर होता है किन्तु सबसे पहले इंसान का गला ही प्रभावित होता है क्यूँकि गले के ज़रिये ही ये शरीर में प्रवेश करता है । हफ्ता गुज़र गया मुझे अस्पताल में और प्रतीक, उसका तो कुछ पता ही नहीं कहीं । यकीन ही नहीं हो रहा था कि प्रतीक ऐसा कुछ कर सकता है । गानों की रिकार्डिंग ,फ़िल्म के गीत सब कैंसिल हो गए कुछ रह गया तो वो था मेरी भारी और दर्द से भर्राई आवाज़ ! डॉ. ने बताया की कुछ महीने लग जायेंगे वापस अपनी आवाज़ आने में क्यूँकि क्षति काफी हुई है । और उन महीनो में छुपी रही मै सबसे,खुद से और यदि कोई नाम छाया था हर तरफ अख़बारों में, टी.वी. चैनलों में तो वो था आज का उभरता सितारा ‘प्रतीक’ !
कुछ महीनो में आवाज़ तो आ गई पहले जैसी पर मन की आवाज़ तो बैठ चुकी थी सदा के लिए और जो आज तक मौन ही है । समय के साथ मेरी शादी कुनाल से हो गई फिर एक बरस में ही मान्यता हमरी खुशियाँ बनकर हमारी जिंदगी में आ गई पर फिर भी लौट ना पाई मेरी वो ‘आवाज़ ‘ ! मालूम ही नहीं किसी को की कभी थे वैसे ही सुन्दर पंख मेरे पास भी. नोच लिया मेरे पंखो को भी किसी बहरूपिये ने और दे दिया दर्द … कर दी ख़ामोश मेरी आवाज़ ।
पर हाँ ! आज इस कहानी से ये सुकून और हिम्मत ज़रूर मिली है की वो मासूम सुन्दर मोर टूटा नहीं है मेरी तरह । है हौसला उसमे अभी भी ,करेगा अपने नए पंख आने का इंतज़ार और फिर भरेगा अपनी उम्मीदों की उड़ान । सोचते हुए चाय का प्याला किचन में रखने पंहुचती हूँ और रात के खाने की सब्जी को बनाने में जुट जाती हूँ कि ना जाने कैसे निकल पड़ी मेरी आवाज़ – ” तुझसे नाराज़ नहीं जिंदगी हैरान हूँ मै ” आज बरसों बाद अपनी ही आवाज़ सुनी है मैंने । शायद मेरे भी नए पंख भरना चाहते हैं अब अपनी उड़ान …

” उड़ना है मुझे फिर ” हमारी कहानी पश्चिम बंगाल के सर्वाधिक पढ़े जाने वाले दैनिक समाचार पत्र ‘ प्रभात वार्ता ‘ के रविवारीय अंक में प्रकाशित हुई है, आप सभी की अमूल्य प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा है .
सादर
इंदु

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