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मेरे ख़्वाब !


लो बना लिया ख़्वाबों को
पत्थर का मैंने
दुनिया सिर्फ एक शीशा
नज़र आती है अब
जैसे कि झेल ही न सकेगी
मेरे एक छोटे से ख्वाब को भी
यदि उछाल दूँ उसकी तरफ
बिखर जायेगी
कई – कई हिस्सों में.
शीशे में सब दिख रहा है
अपने पत्थर रुपी ख़्वाब भी
और ज़िंदगी की सारी चालाकियाँ भी
ज़िंदगी घबराई हुई है कि कहीं
उस पर न आ गिरे कोई ख्वाब
और ख्वाब
मुस्कुरा रहें हैं क्योंकि
नहीं लग रहा उन्हें कोई डर.
मालूम है उन्हें
न तोड़ सकेगा कोई
न मिटा सकेगा कोई
अमर रहेंगे वे सृष्टि के साथ सदा
ख़त्म होगी ज़िंदगी
पर कभी न ख़त्म होंगे मेरे ख़्वाब !

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बाहों में तेरी सिमट गया था जहाँ


बाहों में तेरी सिमट गया था जहाँ
ख़ुशबू से तेरी था महका बागवाँ ।

आँखों से तेरी यूँ उतर आए जज़्बात
इक पल ठहर गया वक्त का कारवाँ ।

गर्म पानी था निकला जब कोर से कहीं
तेरी होठों की प्यास का था दरिया वहाँ ।

आगोश में तेरे, लगा मुक्त है जीवन
था बंधन तेरे जाने के साथ ही वहाँ ।

कुछ ख़्वाब हैं अधूरे कुछ थोड़े-थोड़े पूरे
हैं संग शेष तेरे बसाने को अपना जहाँ ।

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है ज़रूरी !!!


मुस्कान न छूटे किसी की इतना रहम कर ऐ ख़ुदा
यूँ तो सदा ही मुस्कुराते हैं लोग, मुस्कुराने के लिए !!

आज फिर नमी सील रही है बहुत इस जहाँ में
कहीं से थोड़ी धूप तो दिखा दे, सूख जाने के लिए !!

जिस्म रंगा रूह बेरंग आत्मा दिखती नहीं है
कुछ रंगों का इज़ाफा है ज़रूरी,जी जाने के लिए !!

ऊँचे मकाँ, ऊँचा नाम, है सब कुछ ऊँचा हो चला
चलना है ज़मीं पर, ऊँचे इंसान तक जाने के लिए !!

ख़्वाब कब टूटे कि बिखरे ख़बर ही न मिली उसे
था कहता जो, ख़्वाब होते हैं जीवन सजाने के लिए !!

तू देख रहा चुपचाप पैनी नज़रों से हर मंज़र को यहाँ
तोड़ दे अब ये ख़ामोशी, है ज़रूरी इंसानियत बचाने के लिए !!

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कुछ न भाये,बिन तुम्हारे


कुछ न भाये,बिन तुम्हारे
अब तो जीवन में
लो शरण में,दो दरस अब
यही चाह जीवन में ।
मन बना,मंदिर है जबसे
सूरत तेरी ही बसी
दिन-रात नवाऊं शीश अपना
चाहूँ, तुझको जीवन में ।
हर दिन पिरोऊँ पुष्प माला
अपनी चाहत की
इक रोज़ पहने,तू स्वयं आकर
यही ख़्वाब जीवन में ।
खुद न कहीं मै, बस तू है
मेरी साँसों में जो चलता
इक बार आकर छू ले मुझको
जी-जाऊँ जीवन मैं ।

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मुमकिन होता नहीं


चाहे कोई आपको,आपकी तरह
मुमकिन होता नहीं
सुने अनकहे लफ़्ज़ों के जज़बात
मुमकिन होता नहीं
क्यूँ नहीं ये ज़िंदगी,उन्हें उन से मिलाती
जो पूरे कर सके सारे ख़्वाब
मुश्किल तो नहीं,फिर भी
मुमकिन होता नहीं
न परवाह है कोई,कि चाहे कोई क्या
जब दर्द उठे दिल में,फिर चुप रहना
मुमकिन होता नहीं
शिकायतों का दौर थमता नहीं
फिर भी उसे बयाँ करना
मुमकिन होता नहीं
गहरी सूनी आँखे न जाने क्या-क्या खोजतीं
फिर उन्हे सूखा रख पाना
मुमकिन होता नहीं
गज़ब है ये ज़िंदगी,गज़ब हैं ये चाहते
इनके बिन भी जीना
मुमकिन होता नहीं
ठीक उस तरह जैसे रात के बिना
सुबह का आना
मुमकिन होता नहीं।

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