रजाई की गरमाहट है अब भी वही
न कोई परिवर्तन
समय के साथ
बस रूप बदले
कभी खद्दर , कभी वेलवेट
और कभी सिल्क
रुई से भरी वजन में भारी
बेहद हलकी पॉलीफ्रिल वाली
जब भी आगोश में जाएँगे
आप उसके
वही गरमाहट वही सेंक
आज भी
मगर रिश्तों की रजाई !
न पहले सी गरम
न पहले सी भारी
न कोई परिवर्तन
हुआ उसके रूप में
फिर भी …
कम हुई गरमाहट बोलो कब कहाँ
रिश्तों की रजाई में
अब ठण्ड का बसेरा है
खोजती है वो भी
इक ताप गरम सेंक की !