ये कैसा समय है
कि सब अपने में खोए हैं
और अपने नज़रंदाज़ हो रहे
ये कैसा समय है
जब कि सब बिक रहा
और सब
बेचा भी जा रहा ….
ये ऐसा भी समय है जब आदर्श
खोखले हैं, ज्ञात है
फिर भी
इस समय में जीना है
जहाँ जिंदा हैं मरे हुए अकड़े हुए लोग
एक नव निर्माण हो रहा दुनिया का
मरे हुए मरने से डर रहे
और जीवित
जिंदा बचे रहने से !!!
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ये कैसा समय है !
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मौत या मुक्ति
सुना था वो चुपके से दबे पाँव आती है
पर बिन बताए साथ ले जाती है,पता न था।
सुना था शरीर जड़वत जिंदा लाश बन जाता है
आत्मा से शरीर को ये खबर न हो,पता न था।
सुना था सुंदर घना वृक्ष भी पल में सूख जाता है
पर इतनी तेजी से कि महसूस ही न हो,पता न था।
आँखों से नमी चली जाती-पथरा जाती हैं वो सुना था
पथराई पुतलियों में हजारों सवाल जिंदा हों,पता न था।
सब कह तो रहे हैं वो आई संग ले गई अपने़
वक्त से पहले ही ले लेगी वो जाँ,पता न था।
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