Tag Archives: धनतेरस

धन+ते+रस=धनतेरस


धन से ही तो रस हैं सारे
धन ही सुख-दुख के सहारे

धन ही मंदिर धन ही पूजा
न ऐसा कोई पर्व दूजा

धन ने किये हैं रौशन बाजार
बिन धन यहाँ न कोई मनुहार

सब चाहें चखना इस रस का स्वाद
बिन धन जीवन है बकवास

धन ही पहचान यही अभिमान
सिवा इस रस के न कोई गुणगान

गज़ब है चाह न दिल कभी भरता
पीने को ये रस हर कोई मचलता

उमर बीत जाए न होगा कभी बस
जितना मिले ले लें धन ते रस…!

23 टिप्पणियां

Filed under व्यंग्य