दिल आज बस ये चाहे
कि चाह बन जाऊँ
गर मिल सको तुम
तुम्हें गले लगाऊँ
वेदना है जितनी
सब समेट लाऊँ
आँचल में तुम्हें
कुछ इस तरह छिपाऊँ
दर्द को तुम्हारे मै स्वयं पी जाऊँ
जानती हूँ नीम हूँ मैं
नहीं और कोई
फिर भी तुम्हारे लिए कृष्ण मैं बन जाऊँ……
चाह बन जाऊॅं
Filed under कविता
mamma you write very good poems . just keep writing.
i love you.
from -aryaman
पसंद करेंपसंद करें
Thanx Aryaman.
पसंद करेंपसंद करें
Keep going girl…u r on a roll
पसंद करेंपसंद करें
बहुत ही सुन्दर..
पसंद करेंपसंद करें
कल 31/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
पसंद करेंपसंद करें
Fir ek khoobsoorat nazm… 🙂
Shubhkaamanayen!!
पसंद करेंपसंद करें
बहुत सुन्दर….
सादर.
पसंद करेंपसंद करें
Just keep on writing …you are really good !
पसंद करेंपसंद करें
soch,klpana,sabdo ka smndr….vakhai lajbab likhti hai……
पसंद करेंपसंद करें
बहुत ख़ूबसूरत…
पसंद करेंपसंद करें
Aryaman is right………
u write so very well 🙂
bless u both.
anu
पसंद करेंपसंद करें
वेदना को समेटना …दर्द को पी जाना …चाहत के प्रतिमान है ये …सुन्दर रचना की बधाई
पसंद करेंपसंद करें
Reblogged this on हृदयानुभूति and commented:
आज ‘ब्लॉग’ लेखन के दो वर्ष पूरे हुए बेहद खुश हूँ। ब्लॉग पर लिखी पहली रचना आप सभी के लिए। यूँ ही आप सभी का स्नेह और मार्गदर्शन मिलता रहे यही चाह है।
सादर
इंदु
पसंद करेंपसंद करें
Bahut sunder bhav
पसंद करेंपसंद करें
सुंदर चाह…
पसंद करेंपसंद करें
Stage comes, when the difference between Radha and Krishna vanishes…Radha may become Neem and therefore Krishna…a really gud poetry.
पसंद करेंपसंद करें
excellent
पसंद करेंपसंद करें
Maine aaj aapka poora blog dekha and I’m so glad to read all these……….WAKAI BAHUT SUNDAR…………..
पसंद करेंपसंद करें