धन+ते+रस=धनतेरस


धन से ही तो रस हैं सारे
धन ही सुख-दुख के सहारे

धन ही मंदिर धन ही पूजा
न ऐसा कोई पर्व दूजा

धन ने किये हैं रौशन बाजार
बिन धन यहाँ न कोई मनुहार

सब चाहें चखना इस रस का स्वाद
बिन धन जीवन है बकवास

धन ही पहचान यही अभिमान
सिवा इस रस के न कोई गुणगान

गज़ब है चाह न दिल कभी भरता
पीने को ये रस हर कोई मचलता

उमर बीत जाए न होगा कभी बस
जितना मिले ले लें धन ते रस…!

23 टिप्पणियां

Filed under व्यंग्य

23 responses to “धन+ते+रस=धनतेरस

  1. Deserve excellency!
    I do read your each vibrant threads..
    Good luck on this auspicious occasion.

    Being_AC

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  2. dhan hee abaad ker
    dhan hee barbaad kare

    khoob vyaakhaa karee dhan kee aapne

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  3. आप ने इस कविता को व्यंग्य के तौर पर चिन्हित किया है. मेरे हिसाब से यहाँ सच्चाई का सीधा और स्पष्ट चित्रण है.

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  4. Bidyut Kumar

    धन से ही धन आये,धन ही धन का पहचान
    धन के बिना जग असार, बिन धन के न कोई मान सम्मान |

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  5. धन है तो धन्य है!
    धनतेरस की शुभकामनायें!

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  6. Paisa khuda toh nahi, par khuda se kam bhi nahi.

    Nice poem Indu.

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  7. बहोत खूब | आज की दुनिया में पैसा ही सबकुछ है , सही , सहज और सुन्दर अभिव्यक्ति . बधाई हो | दिवाली की बहोत-बहोत शुभकामनाएँ |

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  8. Interesting piece of words.Luv it.
    Dear Blogger Friend,Wish U a Warm and Happy Diwali.Enjoy the Festivities with taste-filled delights,Safe and Delicious Memorable Moments – Regards, Christy Gerald

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  9. पर जीवन भी अज़ीब है, जब धन न हो तो धन धन करता है, जब धन हो जाये तो सोचता है कि पुराने दिन कितने अच्छे थे!

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  10. very truly depicted poem, sadly enough, money means just everything in this materialistic world…

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  11. धन से ही तो रस हैं सारे
    धन ही सुख-दुख के सहारे

    दीपावली के अवसर पर सुन्दर और सामायिक रचना…

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