कुछ न भाये,बिन तुम्हारे
अब तो जीवन में
लो शरण में,दो दरस अब
यही चाह जीवन में ।
मन बना,मंदिर है जबसे
सूरत तेरी ही बसी
दिन-रात नवाऊं शीश अपना
चाहूँ, तुझको जीवन में ।
हर दिन पिरोऊँ पुष्प माला
अपनी चाहत की
इक रोज़ पहने,तू स्वयं आकर
यही ख़्वाब जीवन में ।
खुद न कहीं मै, बस तू है
मेरी साँसों में जो चलता
इक बार आकर छू ले मुझको
जी-जाऊँ जीवन मैं ।
कुछ न भाये,बिन तुम्हारे
Filed under कविता
longing of spritual soul
well written
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बहुत खूबसूरत…..
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awesome as always
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समर्पण की पराकाष्ठा..
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अनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने …
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तेरे बिना जीवन अधूरा
सम्पूर्ण उसे कर दे तूँ
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As always good control & command,
This one, well expressed surrender..
Why you are off the site after the break!
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बहोत ही सुंदर कविता | मानो ऐसा लग रहा था की मीरा अपने शाम को आपकी कविता सुनाकर बुला रही हो | बधाई |
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lovely romantic poem .. 🙂
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इंदु जी बहुत ही अद्भुत वियोग शृंगार रस की प्रस्तुति !!
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शनिवार 26/05/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. आपके सुझावों का स्वागत है
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खुद न कहीं मै, बस तू है
मेरी साँसों में जो चलता
इक बार आकर छू ले मुझको
जी-जाऊँ जीवन मैं ।
बहुत खूब ………..
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बहुत सुन्दर भाव भरी रचना…
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बहुत सुंदर रचना….
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This is a very good poem.I liked it very much.
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The last four lines are the ones I liked the most. Very well put up.
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Very nice.. .heights of devotion.. nice kavita to be shared with… Today I have subscribed your posts… so, whenever U post something new…I will definitely be there..
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thik hai baba…aa jata hu delhi 😉
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सुन्दर भाव सुन्दर रचना इंदु जी
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…beautiful as always…with the obvious difference!
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बहुत खूब
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